प्रिय की स्मृति प्रिय के समान ही रसरुप है और उनकी स्मृति को सजग बनाए रखने के लिए ही कर्तव्य कर्म द्वारा पूजा करना है। जिसे तुम स्थूल कार्य तथा जगत-व्यवहार कहती हो, वही तो उनकी पूजा है। पूजा में पुजारी का खो जाना तो पूजा की सफलता है। फिर न जाने तुम क्यों भयभीत होने लगी हो? हाँ ! एक बात अवश्य है कि यदि पुजारी पूजा के अन्त में प्रिय की मधुर स्मृति न हो जाय,तब सोचने की बात है।- स्वामी श्रीशरणानन्दजी

॥ हरि: शरणम्‌ !॥ ॥ मेरे नाथ ! ॥ ॥ हरि: शरणम्‌ !॥
॥ God's Refuge ! ॥ ॥ My Lord ! ॥ ॥ God's Refuge ! ॥

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॥ हे मेरे नाथ! तुम प्यारे लगो, तुम प्यारे लगो! ॥
॥ O' My Lord! May I find you lovable, May I find you lovable! ॥

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