मेरा तो यह पूरा विश्वास है कि प्रेमास्पद को जितनी माँग है समस्त विश्व के प्रेमियों की माँग इकट्ठी करो, तो नहीं के बराबर है। इसलिये भाई ! आप जैसे हैं वैसे ही, तैयारीके साथ नहीं, सहज भावसे, सरलता से यह स्वीकार कर लें कि अब हम अनाथ नहीं है। हम उन्हें नहीं जानते, तो क्या वे भी हमें नहीं जानते? हम उन्हें नहीं मानते, तो क्या वे भी हमें नहीं मानते? क्या वे हमारे मानने पर हमें अपना मानेंगे? त्रिकालमें भी नहीं। - स्वामी श्रीशरणानन्दजी

॥ हरि: शरणम्‌ !॥ ॥ मेरे नाथ ! ॥ ॥ हरि: शरणम्‌ !॥
॥ God's Refuge ! ॥ ॥ My Lord ! ॥ ॥ God's Refuge ! ॥

स्वामीजी श्रीशरणानन्दजी महाराज पुस्तकों में अपना नाम तथा चित्र प्रकाशित करने के लिए कभी अनुमति नहीं देते थे। परंतु देश, काल, परिस्थिति परिवर्तन तथा कुछ व्यावहारिक कारणों से इस Website में उनका नाम तथा चित्र दिया गया है। श्रीस्वामीजी के इस संबंध के विचार जानने के लिए इस pdf को पढ़ें।

विलक्षण संत, विलक्षण विचार (Pdf)

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॥ हे मेरे नाथ! तुम प्यारे लगो, तुम प्यारे लगो! ॥
॥ O' My Lord! May I find you lovable, May I find you lovable! ॥

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