यह
भली प्रकार समझ लो कि जो प्राणी सद्भावपूर्वक एक बार भगवान्
का हो जाता है, उसका पतन नहीं होता। अत: ‘मैं भगवान् का
हूँ’ यह महामन्त्र जीवन में घटा लो। ऐसा करने पर सभी उलझनें
अपने-आप सुलझ जाएँगी।-स्वामी श्रीशरणानन्दजी
|
॥ हरि: शरणम् !॥ |
॥ मेरे नाथ ! ॥ |
॥ हरि: शरणम् !॥ |
॥ God's Refuge ! ॥ |
॥ My Lord ! ॥ |
॥ God's Refuge ! ॥ |
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|
S.No |
शीर्षक |
|
1A |
स्वामीजीका
परिचय (देवकीमाँ)
|
High
Quality |
1B |
राग-रहित
होना-अचाह होना
|
High
Quality |
2A |
सेवासे
अचाह-अप्रयत्न की सामर्थ्य |
High
Quality |
2B |
हरि:
आश्रय और विश्राम |
High
Quality |
3A |
मेरा
कुछ नहीं है- मुझे कुछ नहीं चाहिये |
High
Quality |
3B |
काम
आ जाओ- कुछ न चाहो |
High
Quality |
4A |
प्रभु
मेरे अपने हैं- सबकुछ प्रभु का है |
High
Quality |
4B |
दृश्य
से विमुख होते ही भूलजनित भिन्नताका नाश |
High
Quality |
5A |
काल्पनिक
ममता तोड़के वास्तविक आत्मीयता अपनायें |
High
Quality |
5B |
हमें
जो चाहिए वह सृष्टि के आश्रित नहीं है |
High
Quality |
6A |
सत्तारुपसे
परमात्मा ही परमात्मा है |
High
Quality |
6B |
हम
अपनी दृष्टि में कैसे है? |
High
Quality |
7A |
प्रेमियोंमें
अपना संकल्प नहीं होता, न उसे भोग चाहिये न मोक्ष |
High
Quality |
7B |
श्रीकृष्ण
ब्रजलीला तथा तात्पर्य |
High
Quality |
8A |
बल
संसार के लिए ज्ञान अपने लिये तथा विश्वास परमात्मा
के लिए |
High
Quality |
8B |
प्राप्त
परिस्थिति के सदुपयोग से अविनाशी स्वाधीन जीवन |
High
Quality |
9A |
उदारता-स्वाधीनता-प्रेम |
High
Quality |
9B |
निरसता
कैसे मिटे? |
High
Quality |
10A |
अचाह
हो जाये-मरने से न डरे |
High
Quality |
10B |
सुख-दु:ख
के सदुपयोग से रसरुप जीवन |
High
Quality |
11A |
काम
का नाश |
High
Quality |
11B |
स्वधर्म-शरीरधर्म |
High
Quality |
12A |
मिला
हुआ अपने लिए नहीं |
High
Quality |
12B |
सेवा
की आवश्यकता,महाप्रयाण संदेश (देवकी माँ द्वारा) |
High
Quality |
13A |
संगीतमय
प्रार्थना-कीर्तन-भजन |
High
Quality |
13B |
देवकी
माँ का प्रवचन |
High
Quality |
14A |
शान्ति
का सम्पादन करें- मूक सत्संग करें |
High
Quality |
14B |
प्रवृति-निवृति-शरणागति
द्वारा चिरविश्राम |
High
Quality |
15A |
सुख-दु:ख
मंगलमय विधानसे निर्मित परिस्थिति है |
High
Quality |
15B |
अपने
सुख-दु:ख का कारण दूसरों को न मानें |
High
Quality |
16A |
इन्द्रियज्ञान-बुद्धिज्ञानका
प्रभाव |
High
Quality |
16B |
हमें
ऐसी बात नहीं करनी है जो हम अपने प्रति नहीं चाहते |
High
Quality |
17A |
परिस्थिति
जीवन नहीं है |
High
Quality |
17B |
योग-बोध-प्रेम |
High
Quality |
18A |
अपने
सभी संकल्प अपने विश्वासपात्र के हवाले कर देना है |
High
Quality |
18B |
संकल्प
पूर्ति और निवृति के अतीत भी जीवन है |
High
Quality |
19A |
अपने
जाने हुए असत् के त्यागसे वर्तमानमें सिद्धि |
High
Quality |
19B |
वस्तुको
अपना न माननेसे सत्य मिलता है |
High
Quality |
20A |
प्राप्त-परिस्थिति
साधन-सामग्री है। |
High
Quality |
20B |
सेवाका
अर्थ किसीका दु:ख मिटाना नहीं है, अपना सुख बाँटना
है |
High
Quality |
21A |
सभी
चाह(कामना) मिटाई जाती है, पूरी नहीं की जाती |
High
Quality |
21B |
उपदेश
करनेवाली सेवा कम-से-कम की जायेउपदेश करनेवाली सेवा
कम-से-कम की जाये |
High
Quality |
22A |
असाधन
को जानना परम साधन है |
High
Quality |
22B |
जाने
हुए असत् को प्रकट करें |
High
Quality |
23A |
किये
हुएकी आसक्ति हमें विश्राम नहीं देती |
High
Quality |
23B |
"है"
में नहीं बुद्धि-"नहीं" में है बुद्धि |
High
Quality |
24A |
दूसरोंकी
धरोहरको आदरपूर्वक भेंट कर देना सेवा है |
High
Quality |
24B |
अप्राप्त
की कामना प्राप्तकी ममता दरिद्रता सिद्ध करती है |
High
Quality |
25A |
जो
पराये दु:खसे दु:खी नहीं होता उसे अपने दु:खसे दु:खी
होना पड़ेगा |
High
Quality |
25B |
वे
चाहे जैसे हो-चाहे जहाँ हो-चाहे सो करे, अपने है और
प्रिय है (प्रेम की दीक्षा) |
High
Quality |
26A |
विवेकविरोधी
कर्म-संबंध-विश्वासका त्याग सत्संग है |
High Quality
|
26B |
अनन्तकी
प्रियतासे अनन्तको रस मिलता है |
High
Quality |
27A |
जगत्
का निर्माण मानवके लिए-मानवका निर्माण प्रभु के लिए |
High
Quality |
27B |
श्रीरामचरित्रके
(श्रीकैकेयीजी-श्रीभरतजी) प्रेमी भक्त तथा तात्पर्य |
High
Quality |
28A |
पराधीनता
पसंद न करें- मिली हुई स्वाधीनताका दुरुपयोग न करें |
High
Quality |
28B |
प्रभु
को समझना नहीं है- स्वीकार करना है |
High
Quality |
29A |
प्रेमीजन
कृप्या यह कैसेट सुनना न चुकें |
High
Quality |
29B |
होनेवाला
चिंतन करनेवाला चिंतन से मिटेगा यह भ्रम है (हँसी) |
High
Quality |
30A |
हम
रस के भोगी है या रस के दाता है |
High
Quality |
30B |
सेवाका
विवेकात्मक रुप "अधिकार-त्याग", भावात्मक रुप
"प्रियता", क्रियात्मक रुप मिले हुए का सदुपयोग है |
High
Quality |
31A |
सांप्रदायिक
भेद बुरा नहीं है लेकिन जो प्रीतका भेद हुआ वह बुरा
है। |
High
Quality |
31B |
जो
चाहिये वो भी चाहिये, जो नहीं चाहिये वो भी चाहिये
इस रोगने आजके धनीको महानिर्धन बना दिया है। |
High
Quality |
32A |
यह
बात अपने जीवनमें से निकाल दो कि हमारा कर्तव्य कोई
दूसरा बतायेगा। |
High
Quality |
32B |
जिसको
जैसा देखना चाहते हो उसे वैसा ही समझो। |
High
Quality |
33A |
कोई
भी व्यक्ति सर्वांशमें, सर्वदा, और सभीके लिए दोषी
नहीं होता। |
High
Quality |
33B |
संकल्प
निवृतिसे जो शान्ति,शक्ति,स्वाधीनता मिलती है वह
संकल्प पूर्तिसे नहीं मिलती। |
High
Quality |
34A |
दु:खका
प्रभाव सुखमें दु:खका दर्शन और दु:खका भोग सुखकी
दासतामें आबद्ध करता है। |
High
Quality |
34B |
आवश्यकता
अनेक कामनाओंको खा लेती है। |
High
Quality |
35A |
परिस्थितिसे
रागरहित,विचारसे वासनारहित, विश्वाससे
समर्पित-शरणागत हो जाये। |
High
Quality |
35B |
अविनाशी,स्वाधीन,रसरुप,चिन्मय
जीवन संसारकी सहायता से नहीं मिल सकता। |
High
Quality |
36A |
प्रभुविश्वासी,प्रभुप्रेमी,शरणागत
कौन शीर्षक देंगें? कृप्या सुनकर अनुभव करें ! |
High
Quality |
36B |
भगवत्
अवतार और भगवान् के चरित्रमें जो
ऐश्वर्य,सौन्दर्य,माधुर्य है वो मानवमें भी है। |
High
Quality |
37A |
भूखसे(दु:खसे)
भी अपना मूल्य बढ़ाओ और भोजनसे(सुखसे) भी अपना मूल्य
बढ़ाओ। |
High
Quality |
37B |
साथी,सामान
करनेकी शक्ति रहते हुए आराम करना अकेला होना पसंद
करें। |
High
Quality |
38A |
मानव
ही बल का सदुपयोग करके बुराई का उत्तर भलाई से दे
सकता है। |
High
Quality |
38B |
सुखियोंमें
उदारता और दु:खियोंमें त्याग नहीं रहता तब लड़ाई
होती है। |
High
Quality |
39A |
अपने
सुख के लिये किया हुआ जप,तप,दान,भजन राक्षसी स्वभाव
है,मानव-स्वभाव नहीं है। |
High
Quality |
39B |
मुझे
कुछ नहीं चाहिये,प्रभु मेरा अपना है,सबकुछ प्रभु का
है। (उद्द्भवजीका व्रज आना) |
High
Quality |
40A |
कर्म
का फल अविनाशी नहीं होता, और वस्तु, योग्यता और
सामर्थ्य द्वारा हम स्वाधीन नहीं होते। |
High
Quality |
40B |
मीराके
प्रभु गिरधर नागर मिल बिछुड़न नहीं कीजै।(मीरा
चरित्र) |
High
Quality |
41A |
जो
देना है वो संग्रहके रुपमें, जो लेना है वो कामनाके
रुपमें मौजूद है जो लेना है उसकी कामना छोड़ दो, जो
देना है उसे उदारतापूर्वक दे दो शेषजो रहेगा उसीका
नाम जीवन है। |
High
Quality |
41B |
मृत्यु
जिसका वियोग करायेगी उसका अगर हम वियोग स्वीकार कर
ले तो फिर जीवनमें कोई भय नहीं रहेगा। |
High
Quality |
42A |
प्रत्येक
वस्तु ईश्वरवादीकी दृष्टिसे प्यारे प्रभु की है,
अध्यात्मवादीकी दृष्टिसे माया मात्र है और
भौतिकवादीकी दृष्टिसे जगतकी है। |
High
Quality |
42B |
जगत
भगवान् ही है और कुछ नहीं है- यह विश्वास जिसको हो
जाये उसका भगवान् सबसे बढ़िया रहता है। (यह
कृपासाध्य है) |
High
Quality |
43A |
अगर
तुम अपने लिये सोचते हो तो कभी दरिद्रता नहीं
जायेगी। |
High
Quality |
43B |
सेवाका
अन्त त्यागमें होता है और सेवाका फल योग होता है। |
High
Quality |
44A |
व्यक्ति
है समाज के अधिकारों का पुंज और समाज है व्यक्ति के
कर्तव्यका क्षेत्र। |
High
Quality |
44B |
देखे
हुए जगत के साथ रहना बनेगा नहीं इसलिये सुने हुए
परमात्माको पसंद करो और देखे हुए शरीरके द्वारा
संसारकी सेवा करो। |
High
Quality |
45A |
प्रेमी
हो जाता है अचाह और प्रेमास्पदमें उत्पन्न होती है
चाह; प्रेम प्रेमास्पदको प्रेम के अधीन कर देता है। |
High
Quality |
45B |
"मेरे
नाथ!" प्रार्थना का महत्व। |
High
Quality |
46A |
बुराई
न करने से भले होते हैं, भलाई करनेसे भले नहीं होते। |
High
Quality |
46B |
अचाह
होने से जरुरी कामनायें पूरी हो जायेगी और अनावश्यक
कामनाओंका नाश हो जायेगा। |
High
Quality |
47A |
प्रेम
देनेके लिये दो बातें है- मेरा करके मेरे पास कुछ
नहीं है. मुझे कुछ नहीं चाहिये और जिसको प्रेम सेना
है वो ही मेरे अपने है।(मीरा चरित्र) |
High
Quality |
47B |
प्रिय
को रस देनेकी लालसा प्रेमियोंमें रहती
है।(श्रीकृष्णके लिये गोपियोंका प्रेम) |
High
Quality |
48A |
मजहब
व्यक्तिगत सत्य होता है धर्म सार्वभौमिक (universal)
सत्य होता है। |
High
Quality |
48B |
उदार
होकर संसारके लिये, स्वाधीन होकर अपने लिये और
प्रेमी होकर प्रभु के लिये उपयोगी हो सकते हैं। |
High
Quality |
49A |
"मेरा
परमात्मा है"- यह प्रेमी होने के लिये हैं। "मैं
परमात्माका हूँ"- यह अभय होनेके लिये है। "परमात्मा
है"- यह अचाह होनेके लिये है। |
High
Quality |
49B |
हमें
परमात्मा चाहिये, परमात्मासे हमें कुछ नहीं चाहिये। |
High
Quality |
50A |
ईश्वर
हमको प्यारा लगे क्योंकि हमारे प्यारसे उसे रस
मिलेगा। |
High
Quality |
50B |
पूर्ण
भिखारी बनता है प्रेमका और जो अपूर्ण है उसे सुलभ
होता है प्रेम। (यह स्वामी श्रीरामसुखदासजी और
स्वामी श्रीशरणानन्दजी का आपसी संवाद है।) |
High
Quality |
51A |
मानव
पद जो प्राप्त हुआ है वह बड़े गौरव की बात है | यह
आपके तप, दान, पुण्य, सेवा का फल नहीं है क्योंकि
तप, दान, पुण्य, सेवा यह मानव होने के बाद करने का
अधिकार होता है और बाकी तो सब भोग योनि है !
|
|
51B |
गुरु
का ज्ञान, धर्म का ज्ञान, सन्तों का ज्ञान, भक्तों
का ज्ञान और आप का ज्ञान उसमें कोई भेद नहीं है
परन्तु भूल यह है कि हम अपने ज्ञान का आदर ही नहीं
करते !! |
|
52A |
मिली
हुई कोई भी वस्तु व्यक्तिगत नहीं होती और जो वस्तु
व्यक्तिगत नहीं होती वो अपने लिए नहीं होती, संसार
के लिए होती है | |
|
52B |
हम
इतने सुन्दर हो जाये कि संसार भी हमारी आवश्यकता
अनुभव करें और परमात्मा भी हमें पसंद करे और हमें न
संसार से कुछ चाहिये और ना परमात्मा से कुछ चाहिये
क्योंकि वह हमारे प्रेमास्पद है और यह हमारे
सेवास्पद है | |
|
53A |
आज
हमें परमात्मा प्यारा नहीं लगता तब हम क्या करते है
– गीत गा करके, माला फेर करके, जप करके, पोथी पढ़
करके, व्याख्यान सुन करके अपने मन को जबरदस्ती
परमात्मा में लगाते है और हट जाता है अपनेआप क्योंकि
हमने सबकुछ किया लेकिन अपना माना ही नहीं | |
|
53B |
हम
मनुष्य है तो हमें सबसे पहली बात माननी पड़ेगी कि हम
पर विश्व और विश्वनाथ, जगत और जगतपति दोनों का
अधिकार है और हमारा किसी पर नहीं है | |
|
54A |
मानव
समाज में आज क्रान्ति की बड़ी भारी आवश्यकता है कि हम
सब लोग सोने से पहले और जगने के बाद विचार करें कि
आज हमने कोई विवेक विरोधी विश्वास-सम्बन्ध-कर्म तो
नहीं किया ? |
|
54B |
मानव
समाज में आज क्रान्ति की बड़ी भारी आवश्यकता है कि हम
सब लोग सोने से पहले और जगने के बाद विचार करें कि
आज हमने कोई विवेक विरोधी विश्वास-सम्बन्ध-कर्म तो
नहीं किया ? |
|
55A |
यह
हमको अपने द्वारा यअनुभव करना है, क्या किसी भी
वस्तु पर मेरा सदा के लिए अधिकार है ? जो कुछ है वह
universal है personal नहीं है | |
|
56A |
परमात्मा
को मानने का प्रभाव क्या होता है जीवन में कि फिर
हमें किसी और को मानने की आवश्यकता नहीं होती | |
|
56B |
अपने
सुख के लिए जो काम किया जाता है वो राग है और राग
रोग में और रोग शोक में बदलता है यह नियम है | |
|
57A |
जिसके
साथ सदैव नहीं रह सकते (शरीर-संसार) उसे बुरा मत
समजो लेकिन नापसंद करो तो उसके (परमात्मा) साथ रहना
अपनेआप मिल जाएगा जो सदैव रहते है | |
|
58A |
इससे
बड़ी लज्जाजनक और दुःख की बात क्या है, मेरे भाई, कि
पसंद करे योग और चर्चा करे भोग की.... पसंद करे यह
(संसार) और चर्चा करे वह (परमात्मा) की | यह
धोखेबाजी जो हम अपने साथ करते है इसीका परिणाम है कि
आज हम मौजूद परमात्मा से दूर है और जिस संसार का
स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं है उसके पीछे दौड़े चले जा
रहे है | |
|
59A |
बल
के द्वारा आप स्वाधीन नहीं हो सकते, शांति नहीं पा
सकते, अमर नहीं हो सकते, अभय नहीं हो सकते.... इससे
सिद्ध होता है कि बल अपने लिए नहीं है, संसार की
सेवा के लिए है | |
|
59B |
न्याय
करो अपने साथ, प्रेम करो दूसरों के साथ – यह सत का
क्रियात्मक रूप है | |
|
60A |
मजहब
के रहते हुए भी बुराई नहीं मिटी, शासन के रहते हुए
भी बुराई नहीं मिटी, फिर भी हम गुरु बनने की सोचते
हैं, शासक बनना चाहते हैं तो ये सुधार की बात है कि
भोग का एक तरीका है !! |
|
60B |
किसी
वस्तु को अपना मानकर हम सेवा करते है तो उसका नाम
सेवा नहीं है, पुण्य-कर्म है | |
|
61A |
हम
दूसरों के अधिकार की रक्षा करेंगे ही और अपने अधिकार
की बिलकुल परवाह नहीं करेंगे – यह व्रत से हम बड़ी
सुगमतापूर्वक राग रहित हो सकते हैं | |
|
61B |
जो
शक्ति असत की ममता में व्यय होती है, असत के नाश से
वोही शक्ति सत की प्रियता में परिवर्तित हो जाती है
| |
|
62A |
जो
शक्ति असत की ममता में व्यय होती है, असत के नाश से
वोही शक्ति सत की प्रियता में परिवर्तित हो जाती है
| |
|
62B |
आप
बैंक के एकाउंट पर, ज्ञान-कला-विज्ञान पर विश्वास
करते है कि प्रभु विश्वास करते है ? - गंभीरता से
विचार करें !! |
|
63A |
आज
हम पद, वस्तु, परिस्थिति के गौरव से गौरववाले होते
हैं लेकिन भूल गये इस बात को कि हम मानव हैं इसलिए
हमारा गौरव है | |
|
63B |
दाता
ने मानव को ऐसा विवेक दिया है जिसका आदर करते ही
मानव की सद्गति अभी के अभी हो जाती है | |
|
64A |
मानवता
वहीँ से आरम्भ होती है कि जहाँ लेने की बात ही नहीं
आती और केवल देने ही देने की बात आती है | |
|
64B |
जीवन
का जो सत्य होता है वो किसी मजहब की बात नहीं होती,
किसी इज्म की बात नहीं होती – वो सभी की अपनी बात
होती है | |
|
65A |
और
अप्रयत्न होने से वो जीवन मिलेगा जो सदैव आपके पास
है, सदैव आपमें है, सदैव आपका है | |
|
65B |
दिल
की सख्ती मिट जाये, लालच मिट जाये उसके लिए हमें
अपने से अधिक दुःखियों को देखना चाहिये | |
|
66A |
पराश्रय
और परिश्रम के द्वारा पर-सेवा करें और अपने लिए हरि
आश्रय स्वीकार करें | |
|
सभी प्रवचनों का शीर्षक दिया
जा चुका हैं, फिर भी कोई साधक अपनी तरफ से शीर्षक देना चाहते
हैं तो उनके सुझाव सादर आमंत्रित हैं।
॥
हे मेरे नाथ! तुम प्यारे लगो, तुम प्यारे लगो! ॥
॥ O' My Lord! May I find you lovable, May I find you
lovable! ॥
|