॥ हरि: शरणम् !॥ |
॥ मेरे नाथ ! ॥ |
॥ हरि: शरणम् !॥ |
॥ God's Refuge ! ॥ |
॥ My Lord ! ॥ |
॥ God's Refuge ! ॥ |
स्वामीजी
श्रीरामसुखदासजी के प्रवचन से
कई ऐसी बातें हैं। जो हमें
मिली हैं, शरणानन्दजी के व्याख्यान में, उनके विवेचन में,
बड़ी प्यारी बातें हैं, नई बातें नई। उनका विवेचन एक नया
ढंग का है। उधर ध्यान नहीं जाता है। भाव भी उनका विलक्षण
हैं, वृति भी विलक्षण हैं और पकड़ भी बड़ी विलक्षण है। सब
संतों से विलक्षण बात हैं, निराली बात है, एकदम। समझ नहीं
सकता, हरेक आदमी। मेरे को तो इतना आया है, कि शरणानन्दजी
के सामने इतने तरह के पुरुष आये, परंतु कोई भी ऐसा आया ही
नहीं जिसके सामने शरणानन्दजी विशेषता से कह सकें कि
तुम्हें बताऊँ बात। किसी को नहीं बतायीं। ऐसी गहरी-गहरी
बातें, विलक्षण बातें, बहुत विचित्र बातें। वे कह नहीं
सकें। कोई मिला ही नहीं जिससे विशेषता से कह सकें। एक भी
आदमी नहीं मिला उनको, मेरे विचार से। देवकी जी को पुत्री
मानते थे, परंतु उसको भी एक-दो बातें बतायीं पूरी नहीं
बतायें। प्यारी बातें, जो बड़ी गहरी बातें हैं, बड़े-बड़े
आचर्यों को नहीं दिखतीं इतनी गहरी बातें हैं। तत्व बताया
हैं, गहरा तत्व बताया हैं। मेरे मन में तो कभी-कभी आती हैं
कि दो-चार-पाँच आदमी को इकट्टा करके बतावें, तालमेल बैठी
नहीं। परन्तु उनके मन में ही नहीं आयी ऐसी, विचित्र थे।
नयी-नयी बातें, नया सिद्धान्त। समझ नहीं सकते विचारे, हरेक
आदमी समझ नहीं सकते। वास्तव में ऐसा कोई पात्र मिलता
नहीं।-स्वामी श्रीरामसुखदासजी
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This Discourse In The Voice Of Swami Shri Ramsukhdasji
शरणानन्दजी महात्मा क्या थे
महाराज ! मेरे मनसे अगर आप पूछो तो नये दार्शनिक थे ! जैसे
योग है, सांख्य है, पूर्व मीमांसा है, उत्तर मीमांसा है,
न्याय है, छ: दर्शन है। छ: दर्शनोंसे निराला दर्शन है
उनका। इतना किसने समझा है? किसने ख्याल किया है? बताओ ।
मैं ये बात बता सकता हूँ आपको । दार्शनिक, नये दार्शनिक !
परन्तु किसका विश्वास है? ज्ञानयोगमें, कर्मयोगमें,
भक्तियोगमें विलक्षण बातें बतायी उन्होंने; उनकी बातें
अकाट्य है; कोई खण्डन नहीं कर सकता उनकी बातोंका । आपके
शास्त्र आपसमें खण्डन करते हैं एक-दूसरेका, मगर उनकी बातों
का खण्डन करें कोई ! और प्रमाण देते नहीं हैं, किसी
शास्त्र का, किसी पुस्तक का कोई प्रमाण नहीं । उनसे कहा था
कि प्रमाण क्यों नहीं देते ? उन्होंने कहा कि जिसे संदेह
हो वे प्रमाण दें, मुझे संदेह ही नहीं तो प्रमाण क्यों
दें? प्रमाण कि क्या आवश्यकता है ? उस संत को कितना आदर
दिया हमलोगोंने? उनकी बुद्धि बहुत तेज थी, उन्होंने खुद ने
कहा कि भगवान् ने मुझे आवश्यकता से ज्यादा बुद्धि दे रखी
है, उनके कहें हुए वचन हैं। तो जिस समुदाय में वो थे, जिस
समुदाय की बात कहते थे, उस समुदाय ने भी कितना आदर किया
है? दूसरों के आदर का आशा ही कैसे रखे? जिस समुदाय में वो
थे, जिस विषय में हमलोग चलते हैं, उस विषय में भी
विलक्षणता का आदर नहीं किया है। तो सच्ची जिज्ञासा नहीं है
!-स्वामी श्रीरामसुखदासजी
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शरणानन्दजी के समान मैं मानता
नहीं हूँ किसी संतको, मेरे हॄदयमें बात है ये। आपको राजी
करना मेरे को है नहीं, क्योंकि आपसे कुछ लेना है नहीं,
मेरे मनकी बात कोई पूछे तो शरणानन्दजी बहुत ऊँचे थे ।
शरणानन्दजी में बहुत सरलता है, परन्तु लोग समझते नहीं ।
प्रबोधनी में लिखा है "मैं क्रान्तिकारी संन्यासी हूँ,
शास्त्रों में हलचल मच जाये, हलचल, ऐसी है । मेरी बातें
ठीक समझे तो हलचल मच जायेगी सब दर्शनोंमें"। -- स्वामी
श्रीरामसुखदासजी
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Listen The Full Discourse As It Is Very Rare
मेरी दृष्टि में बहुत अच्छे
महात्मा हैं वो, मेरी दृष्टि में तो ऐसे हैं कि सबसे
श्रेष्ठ महात्मा हैं। तत्वज्ञ, जीवनमुक्त महापुरुष जो पहले
हो गये, उनमें भी कोई ऐसा दीखता नहीं, ऐसे विशेष
हैं।--स्वामी श्रीरामसुखदासजी
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शरणानन्दजी महाराज ने अपने को
बड़ा क्रान्तिकारी संन्यासी बताया है। इन्होंने ऐसी
बारीक-बारीक बढ़िया बातें बतायी हैं, जिसमें पहले वाली
बातें उनसे विशेष बातें बतायी हैं। शरणानन्दजी की बातों से
बहुत जल्दी परिवर्तन होता है और सबके सिद्धान्त से अगाड़ी
हो, ऐसी बातें निकाल के गये हैं। उसमें भी ये बात बतायी
हैं, कि सबसे श्रेष्ठ आदमी कौन है? जो हरि का आश्रय लेता
है और विश्राम करता है, दो बातें बतायी हैं।--स्वामी
श्रीरामसुखदासजी
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‘दु:ख का
प्रभाव’ एक पुस्तक है शरणानन्दजी की, पढ़ों उसको।
शरणानन्दजी की बातें जल्दी समझ में नहीं आतीं। बड़ी
विचित्र बातें हैं। उन्होंने कहा है कि मैं एक
क्रान्तिकारी संन्यासी हूँ। जितने साधन बताये हैं, सबमें
क्रान्ति कर दी, एकदम! ऐसी विचित्र बातें बतायी हैं जो
आदमी के कान खुल जायँ, आँख खुल जायँ, होश आ जायँ।-स्वामी
श्रीरामसुखदासजी
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This Discourse In The Voice Of Swami Shri Ramsukhdasji
शरणानन्दजी
की जो बातें हैं ऐसी बातें मिलती नहीं हैं.... शास्त्रों
में मिलती है, तो पीछे मिलती है.... उनकी बातें सुनने के
बाद मिलेगी.... किन्तु (पहले) मिलती ही नहीं है.... और
इतनी गहरी बातें हैं महाराज.... बहुत विचित्र बातें है....
बहुत विचित्र !! तात्पर्य है तुम चेत करो.... होश में
आओ.... (लाभ ले लो).... बहुत अकाट्य युक्ति दी
उन्होंने.... छहों दर्शन है ना उससे तेज है.... थोड़ी-थोड़ी
मैंने पढाई की हुई है....अनुभव किया है....बहुत विचित्र थे
!! - स्वामी रामसुखदासजी
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This Discourse In The Voice Of Swami Shri
Ramsukhdasji
सन्त
महात्माओं (शरणानन्दजी) से मिली "वासुदेव सर्वम" से आगे
तक की बात विस्तार से क्रमबद्ध स्वामी रामसुखदासजी
महाराज ने attach प्रवचन (7.6.2001 - 4.00 pm) में बतायी
है कृपया जरुर सुने
'सीमा
के भीतर असीम प्रकाश' पुस्तक में स्वामी श्रीशरणानन्दजी
के विषय में स्वामी श्रीरामसुखदासजी के विचार
'बिन्दु
में सिन्धु' पुस्तक में स्वामी श्रीशरणानन्दजी के विषय
में स्वामी श्रीरामसुखदासजी के विचार
'नयी
रास्ते नयी दिशाएँ' पुस्तक में स्वामी श्रीशरणानन्दजी के
विषय में स्वामी श्रीरामसुखदासजी के विचार
"एक
अद्वितीय सन्त" - स्वामी शरणानन्दजी महाराज के प्रति
स्वामी रामसुखदासजी महाराज के विचार
॥
हे मेरे नाथ! तुम प्यारे लगो, तुम प्यारे लगो! ॥
॥ O' My Lord! May I find you lovable, May I find you
lovable! ॥