जीवन का मुख्य उद्देश्य प्रेम-प्राप्ति है। वह तभी प्राप्त होगा, जब हम उनकी कृपा का अश्रय लेकर अपने को उन्हीं के समर्पित कर दें। इस बात के लिए चिन्तित न हों कि हम कैसे हैं? जैसे भी हैं, उनके हैं। वे जैसे भी हैं, अपने हैं। उनकी कृपा स्वयं हमें उनसे प्रेम करने के योग्य बना लेगी। - स्वामी श्रीशरणानन्दजी

॥ हरि: शरणम्‌ !॥ ॥ मेरे नाथ ! ॥ ॥ हरि: शरणम्‌ !॥
॥ God's Refuge ! ॥ ॥ My Lord ! ॥ ॥ God's Refuge ! ॥

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॥ हे मेरे नाथ! तुम प्यारे लगो, तुम प्यारे लगो! ॥
॥ O' My Lord! May I find you lovable, May I find you lovable! ॥

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