संघ की साधन-प्रणाली में किसी मत, सम्प्रदाय की गन्ध नहीं है और न किसी का विरोध है। क्यों? भूमि भला बताओ तो सही, किस पौधे का विरोध करती है और किस का पक्ष करती है? भूमि न किसी पौधे का विरोध करती है और न किसी का पक्षपात करती है, अपितु प्रत्येक पौधे को विकसित करती है। उसी प्रकार की साधन-प्रणाली मानव-सेवा-संघ की साधन-प्रणाली है। - स्वामी श्रीशरणानन्दजी

॥ हरि: शरणम्‌ !॥ ॥ मेरे नाथ ! ॥ ॥ हरि: शरणम्‌ !॥
॥ God's Refuge ! ॥ ॥ My Lord ! ॥ ॥ God's Refuge ! ॥

मानव सेवा संघ का प्रतीक और उसकी व्याख्या


1. बाहरी वृत- समाज का प्रतीक है ।

2. वृत के अन्दर त्रिभुज-मानवता-युक्त मानव का प्रतीक है ।

जहाँ कहीं तीन बातें मिलकर एक ही बात की पुष्टि करती हैं उसे तृत्व(Trinity) कहते हैं, अर्थात्‌ तीन मिलकर एक और प्रतीक-विज्ञान(Science of Symbology) में तृत्व का प्रतीक माना गया है त्रिभुज ।

मानव सेवा संघ की भाषा में मानव किसी आकृति विशेष का नाम नहीं है, अपितु जिस व्यक्ति में मानवता है वही मानव है । मानवता के निम्नलिखित तीन लक्षण हैं-

(क) विचार,भाव और कर्म की भिन्नता होते हुए भी स्नेह की एकता (प्रेम) ।

(ख) अभिमानरहित निर्दोषता (त्याग) ।

(ग). अपने अधिकार का त्याग एवं दूसरों के अधिकार की रक्षा (सेवा) ।

3. मानवता के उपर्युक्त तीनों लक्षण प्रतीक में त्रिभुज के भीतर पाँच पदार्थों द्वारा अभिव्यक्त किये गये हैं ।

(अ) अग्नि शिखा के तीन भाग-
(क) विचार शक्ति (ख) भाव शक्ति और (ग) क्रिया शक्ति के प्रतीक हैं। ये तीनों शक्तियाँ प्रत्येक व्यक्ति में होती हैं और मनुष्य की व्यक्तिगत भिन्नता ( Individual differences ) इन तीनों की मौलिक भिन्नता पर ही आधारित है-

परन्तु मानव सेवा संघ इस भिन्नता के होते हुए भी स्नेह की एकता स्वीकार करता है जिसका प्रतीक है-सूर्य ।

(ब) सूर्य स्नेह की एकता का प्रतीक है। वह विभिन्न स्वरुप, प्रकृति और कर्म वाले चराचर जगत्‌ को समान स्नेह से देखता है और उन्हें समान रुप से ताप और प्रकाश देकर अपना स्नेह की एकता का परिचय देता है ।

इस प्रकार तीन भागों में विभाजित अग्निशिखा और सूर्य दोनों मिलकर मानवता के प्रथम लक्षण "विचार, भाव और कर्म की भिन्नता होते हुए भी स्नेह की एकता सुरक्षित रखने की बात (प्रेम)" को अभिव्यक्त करते हैं ।

(स) जल- निर्दोषता का प्रतीक है। मगर मानव सेवा संघ के दर्शन में निर्दोषता का भास सबसे बड़ा दोष है। अत: उसका परिहार करने के लिए कमल का समावेश किया गया है।

(द) कमल- निरभिमानता और असंगता का प्रतीक है। इस प्रकार जल और कमल दोनों मिलकर मानवता के दूसरे लक्षण "अभिमान रहित निर्दोष जीवन(त्याग)" को प्रदर्शित करते हैं।

(य) मानव हृदय मानवता के तीसरे लक्षण, "अपने अधिकार का त्याग तथा दूसरों के अधिकार की रक्षा" का प्रतीक है ।

मानव-शरीर-विज्ञान( Humana Physiology ) का यह वैज्ञानिक सत्य है कि शरीर में सबसे अधिक शुद्ध रक्त हृदय में होता है । हॄदय इस शुद्ध रक्त को सम्पूर्ण शरीर की सेवा में प्रतिक्षण भेजता रहता है। वह उस शुद्ध रक्त में से अपनी शक्ति या खुराक के लिए रक्त की एक बूँद भी नहीं लेता, यद्यपि जीवित रहकर सम्पूर्ण शरीर की सेवा करने के लिए उसे स्वयं अपने लिए भी शुद्ध रक्त की परम आवश्यकता है। वह अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए तो शरीर की उदारता पर निर्भर रहता है । शरीर की ओर से आने वाली रक्त नलिकाएँ( Coronary Articles ) जो शुद्ध रक्त हृदय को देती हैं उन्हीं से यह पोषण पाता है। प्रतीक में ये नलिकाएँ हृदय में प्रदर्शित हैं। इस प्रकार मानव-हृदय मानवता के उस लक्षण का प्रतीक है जो अपने अधिकार का त्याग और दूसरों के अधिकार की रक्षा (सेवा) में निहित है।

4. त्रिभुज के तीनों कोण( angles ) समाज के प्रतीक वृत( circle ) से तीनों स्थलों पर मिलते हैं। यही व्यक्ति और समाज की अविभाज्यता का प्रतीक है।( Individual is Inseparable from Society ) इस प्रकार मानव सेवा संघ व्यक्ति और समाज के बीच अविभाज्य सम्बन्ध को स्वीकार करता है। उस अविभाज्य सम्बन्ध को स्वीकार करता है। उस अविभाज्य सम्बन्ध का क्रियात्मक रुप ही व्यक्ति द्वारा समाज की सेवा है अर्थात्‌ व्यक्ति अपने तीन विशिष्ट गुणों द्वारा समाज की सेवा कर सकता है-

1. व्यक्ति की निर्दोषता से समाज निर्दोष होता है।

2. स्नेह की एकता से संघर्ष का नाश होता है ।

3. अपने अधिकार के त्याग और दूसरों के अधिकार की रक्षा से सुन्दर समाज का निर्माण होता है और इन तीनों द्वारा अपना कल्याण भी होता है, अर्थात्‌ हमें अपने कल्याण के लिए कुछ और करना है, और सुन्दर समाज के निर्माण के लिए कुछ और, ऐसी बात नहीं है, अपितु मानव सेवा संघ के दर्शन में जिस साधना से व्यक्ति का कल्याण होता है उसी से समाज का निर्माण भी होता है। ‍


॥ हे मेरे नाथ! तुम प्यारे लगो, तुम प्यारे लगो! ॥
॥ O' My Lord! May I find you lovable, May I find you lovable! ॥

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